वन विभाग का कर्मचारी ठीक से काम कर रहा है कि नहीं यह चेक करने वन विभाग का अधिकारी जाता है। इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग को उसका अधिकारी चेक करता है, पुलिस को पुलिस अफसर चेक करता है। इसी प्रकार लगभग सभी विभाग को उसके अधिकारी चेक करते हैं।
एक डीएम को छोड़ दिया जाय जो जिले का मुखिया है तो हम आज तक यही नहीं समझ पाए कि परिषदीय विद्यालयों के कितने अधिकारी हैं
इसका कोई शासनादेश है या नहीं कि हमारे विद्यालय को चेक करने का अधिकार किन किन को है। जब मर्जी होता है
अब तो ADO पंचायत , लेखपाल ,अमीन और सफाईकर्मी को भी डीएम साहब भेज दे रहे हैं। जाओ गिन आओ कितने आये हैं?
नायब तहसीलदार ,तहसीलदार , SDM के रोब झाड़ने के किस्से तो आम हो चुके हैं। अपने विभाग के डिप्टी साहब ,बेसिक साहब से लेकर AD साहब तो अध्यापकों के ऊपर फन काढ़े पहले से बैठे हैं।
अब तो प्रधान को छोड़िये ,जिसने कभी ढंग से चप्पल नहीं पहनी वो गाँव का मेम्बर बन के सीधे स्कूल आता है। माट साहब अब ठीक से आईये जैसे शब्द भी सुना जाता है। जब लूँगी पहने सुबह सुबह मुँह में दातून लिए दो कौड़ी का गाँव का लखेरा विद्यालय आकर टोन में पूछता है , का टाईम होता? तो सच मानिये अध्यापक तो उसी दिन मर जाता है और ये भी कितनी बड़ी विडंबना की बात है कि इतनी चेकिंग के बाद भी शिक्षा का स्तर अनवरत अधोगति को प्राप्त हो रहा है।
किसने चाणक्य को चेक किया था? किसने द्रोण को और किसने बाल्मीकि ,वशिष्ठ को चेक किया था। हमारे दामन से लेकर हमारी आत्मा तक को छलनी करने वाले लोकतंत्र के प्रबुद्धजनों ! कभी ठंढे दिल और दिमाग से सोंचना और फिर उत्तर देना।
अध्यापक
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