......"ऐसे अध्यापकों का क्या करें ?"......
- जो कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता ।
- जो कोई अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांटना नहीं चाहता ।
-जो कोई किसी का सही समय पर उचित मार्गदर्शन नहीं कर सकता ।
-जो कोई स्कूल का माहौल नार्मल बनाने में सहयोग नहीं कर सकता ।
-जो कोई जिम्मेदारी से भागने के लिए दूसरों को ये दिखाता हो कि जैसे उसे कुछ काम आता ही नहीं ।
-जो हर समय चालाकी,छलकपट,धोखे से या मीठा बनकर सिर्फ अपना काम निकलवाता हो और स्कूल जाए भाड़ में ।
-जो कोई खुद विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं करना चाहता,लेकिन अपने निजी स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों या समाज के लोगों को भ्रमित कर उनको ढाल के तौर पर इस्तेमाल करता हो ।
-जो खुद अहम् का शिकार हो और दूसरों से इसकी शिकायत करता हो ।
-जो अपनी तनख्वा की पाई पाई का हिसाब रखता हो,लेकिन ये याद नहीं कि स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए पीरियड भी लेना है ।
- जो स्कूल में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने के बजाये राजनीती का अखाडा बना दे ।
-जो समाज में दूसरों के मान-सम्मान को बढ़ता देख तिलमिला उठे और हमेशा इस बात के कारण उनसे ईर्ष्या से भरा रहे ।
-जो खुद को स्कूल का एक दादा समझ ले और सोचे कि उसकी ही दादागिरी चले,सब उसके ही गुण गाएँ ।
- जिसको पढ़ाने लिखाने से कोई मतलब नहीं,भले ही रिजल्ट माइनस में आए,लेकिन विद्यार्थी वर्ग हो,अध्यापक-वर्ग हो या समाज....हर कंही चर्चा में वो खुद को देखना चाहे ।
-जो स्कूल में दूसरों के कारण हो रहे सकारात्मक बदलाव में अपना सहयोग देने की बजाए हमेशा दूसरों को सदा हतोत्साहित करने का प्रयास करे ।
-जो स्कूल के हेड के आदेशों को माने नहीं,अधिकारीयों से डरे नहीं और विभाग के नियमों का पालन न करे ।
-जो स्कूल को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की बजाये,उसे हमेशा निचले और पुराने ढर्रे पर ही रखना चाहता हो ।
......आदि-आदि ।
बहुत कुछ है कड़वे अनुभव के आधार पर लिखने को....,लेकिन......सोचता हूँ कि फिर कुछ लोग शिकायत करेंगे कि अध्यापक होते हुए सिर्फ अध्यापकों पर ही ऐसा क्यों लिखा....? बातें कड़वी हैं....कुछ को चुभेंगी जरूर ।
क्या करें.....! सच कड़वा जो होता है....!
आपके विचार आमन्त्रित हैं । बताना जरूर.....कि..
ऐसे अध्यापकों का क्या करें....?
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