रविवार, 10 दिसंबर 2017

विराम चिन्ह

1. Period (.) - is used in the end of the sentence. However we put a period at the end of an indirect question.
Period (.) चिन्ह का प्रयोग वाक्य के अंत में किया जाता है. इसका प्रयोग हम indirect question के अंत में भी करते हैं
Eg: Rome is the capital of Italy.

2. Question Mark (?) - We use question marks to make clear that what is said is a question. When we use a question mark, we do not use a full stop.
Question Mark (?) का प्रयोग हम तब करते हैं जब कोई प्रश्न पूछा जा रहा हो.
Eg: Why do they make so many mistakes?

3. Quotation Mark (" ") - are a pair of punctuation marks used primarily to mark the beginning and end of a passage attributed to another and repeated word for word. They are also used to indicate meanings and to indicate the unusual or dubious status of a word.
Eg: "Don't go outside," she said.
Single quotation marks (') are used most frequently for quotes within quotes.
Eg: Marie told the teacher, "I saw Marc at the playground, and he said to me 'Bill started the fight,' and I believed him."

4. Exclamation Point (!) - We use exclamation marks to indicate an exclamative clause or expression in informal writing. When we want to emphasise something in informal writing, we sometimes use more than one exclamation mark: विस्मयादिबोधक चिह्न का उपयोग हम तब करतें हैं जब, हम अनौपचारिक लेखन में किसी चीज़ पर ज़ोर डालना चाहते हैं.
Eg: Listen!
Oh no!!! Please don’t ask me to phone her. She’ll talk for hours!!!

5. Comma - We put a comma (,) between items in a list. We often put a comma before 'or' , 'and' or 'but' when we add a clause.
Eg: It’s important to write in clear, simple, accurate words.

6. Colon (:) - is used to introduce lists, to indicate a subtitle or to indicate a subdivision of a topic, to introduce direct speech, and between sentences when the second sentence explains or justifies the first sentence.
Eg: There are three main reasons for the success of the government: economic, social and political.

7. Semi-colon (;) - We use semi-colons to separate two main clauses. In such cases, the clauses are related in meaning but are separated grammatically.
Eg: Spanish is spoken throughout South America; in Brazil the main language is Portuguese.

8. Parentheses () - Parentheses ( ( ) ) are curved notations used to contain further thoughts or qualifying remarks. However, parentheses can be replaced by commas without changing the meaning in most cases.  Don't know the hindi
Eg: John and Jane (who were actually half brother and sister) both have red hair.

9. Hyphen - A hyphen is used to join two or more words together into a compound term and is not separated by spaces. For example, part-time, back-to-back, well-known.

Gk time & TRICKS

किस भाषा में कितने अक्षर
1- हिन्दी - 52
2- संस्कृत - 44
3- उर्दू- 34
4- फारसी - 31
5-चीनी - 204
6- जर्मन - 29
7- र्फेच- 25
8- यूनानी- 24
9- अरबी- 29
10- स्पेनी- 27
11-इटालिया- 20
12-लैटिन- 22
13- तुर्की- 28
14- रूसी- 36
15- इंग्लिश- 26

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TRICK TRICK TRICK
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भारत के प्रारम्भ से लेकर आजतक के सारे राष्ट्रपति के
काल
क्रमानुसार नाम है
# trick -- '' राजु की राधा जाकर गीरी फकरुद्दीन
रेड्डी की
जेल मे तब राम शंकर नारायण कि कलम से प्रतिभा
निकली
प्रणव कि ''
राजु-- राजेन्द्र प्रसाद
राधा -- एस. राधाकृष्णन
जाकिर -- जाकिर हुसैन
गीरी-- वी वी गीरी
फकरुद्दीन -- फकरुद्दीन अली अहमद
रेड्डी -- निलम संजीवा रेड्डी
जेल -- ज्ञानी जैल सिंह
राम -- रामकृष्ण वेंकटरमन
शंकर -- शंकर दयाल शर्मा
नारायण -- के आर नारायण
कलम -- ए पी जे अब्दुल कलाम
प्रतिभा --प्रतिभा देवी पाटिल
प्रणव -- प्रणव मुखर्जी
# नोट -- जस्टिस ऍम हिदायातुल्ला दो बार
भारप्राप्त
राष्ट्रपती थे और बिडी जाट्टी एक बार।

भारत में युरोपीय कंपनियो के आगमन का क्रम(क्रमशः)
Trick – {पुत्र अडा डैड फसा}
पुत्र – पुर्तगाली(1498)
अ – अंग्रेज(1600)
डा – डच(1602)
डैड – डैनिस(1616)
फ – फ्रांसीसी(1664)
सा –स्वीडिश(1731)

क्षेत्रफल के अनुसार भारत के बडे राज्य
Trick – {राम महान है आप}
रा -राज्स्थान
म -मध्य प्रदेश
महान -महाराष्ट्र
आप -आंध्र प्रदेश

जनसंख्या के अनुसार भारत के बडे राज्य
Trick – {UP ने बिहारी के गाल पर मारा}
UP -उत्तर प्रदेश
बिहारी -बिहार
गाल -बंगाल
मारा -महाराष्ट्र

"बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली
नदियाँ (Trick)"
"MP की गोद में रेखा का कब विलय हुआ"
1. M- महानदी
2. P-पेन्नार "की-silent"
3. गौ-गोदावरी, गंगा "में-silent"
4. रेखा-स्वर्ण रेखा
5. का-कावेरी
6. क-कृष्णा
7. ब-ब्राह्मणी
8. विलय-वेगाई "
हुआ-silent.

"अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
(Trick)"
"सालू की माँ भानमती सोजा"
1. सा-साबरमती
2. लू-लूनी "की-silent"
3. माँ-माही
4. भा-भारत पुझा या पोन्नानी
5. न-नर्मदा(खम्भात की खाड़ी)
6. म-मांडवी
7. ती-ताप्ती (खम्भात की खाड़ी)
8. सो-सोम
9. जा-जाखम..

G-20 के सदस्य देशो का नाम है ।
# trick -- GURUJI(गुरुजी) SITA(सीता) AB(अब) SSC
FCI ME(में) जॉब करती है
G-- Germany
U-- USA
R-- Russia
U-- UK
J-- Japan
I-- India
S-- South Africa
I-- Indonesia
T-- Turkey
A-- Australia
A-- Argentina
B-- Brazil
S-- Saudi Arabia
S-- South Korea
C-- Canada
F-- France
C-- China
I-- Italy
M-- Mexico
E-- European Union
जॉब करती है -- silent words

कोयला उत्पादक प्रमुख देश.
Trick:-- “ C.U.B.”
C— चीन
U— USA
B— भारत

अभ्रक उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ B.B.C.”
B— भारत
B— ब्राजील
C— चीन

टीन उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ चीनी.I.P.”
चीनी-- चीन
I— इंडोनेशिया
P— पेरु

ताँबा उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ चिली.U.R.”
चिली--चिली
U—USA
R--रुस

लोहा उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ C.B.A.”
C--चीन
B--ब्राजील
A--आस्ट्रेलिया

चाँदी उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ मैप चीन का ”
मै--मैक्सिको
प--पेरु
चीन--चीन
का--Silent

सोना उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “दस आस्ट्रेलिया”
द--दक्षिणी अफ्रीका
स--संयुक्त राज्य अमेरिका
आस्ट्रेलिया--आस्ट्रेलिया

कपास उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “C.U.I.P.S.”
C--CHINA
U--USA
I--INDIA
P--PAKISTAN
S--SUDAN

गन्ना उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “B.B.C.”
B--भारत
B--ब्राजील
C--क्यूबा

कहवा उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “B.C.I.”
B--ब्राजील
C--कोलम्बिया
I--आइवरी कोस्ट

चावल उत्पादक प्रमुख देश
Trick:-- “ C.B.I ”
C--चीन
B--भारत
I--इंडोनेशिया

रविवार, 3 दिसंबर 2017

अफवाहों पर ध्यान न दें

साथियों,
प्रशासन के माध्यम से बार-बार यह खबर फैलाई जा रही है कि शीर्ष नेताओं को और अगुवाई करने वाले शिक्षाकर्मियों को जल्द ही सामान्य प्रशासन समिति के अनुमोदन के माध्यम से बर्खास्त कर दिया जाएगा ताकि यह आंदोलन समाप्त हो जाये । लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि सीमित समय सीमा में ऐसा करना भी आसान नहीं है । सबसे पहले तो किसी भी नियमित शिक्षाकर्मी को बर्खास्त करने से पहले उसे तीन बार नोटिस देना होता है और उस नोटिस में पावती होनी चाहिए कि शिक्षाकर्मी को यह नोटिस मिली है या फिर उसके किसी परिजन को यह नोटिस मिली है और यदि डाक से भेजा जाता है तो उसमें यह लिखा होना चाहिए की इसे लेने से इनकार किया गया है, अगर बगैर इसके कोई भी कारवाई किया जाता है तो वह न्यायालय में शून्य घोषित हो जाएगा और साथ ही जिला/ जनपद पंचायत को न्यायालय से जो लताड़ मिलेगी वह अलग है . इसलिए ऐसी किसी भी प्रकार की कार्यवाही का होना बहुत ही मुश्किल है साथ ही मीडिया में जो यह खबरें चल रही है कि शीर्ष नेताओं को बर्खास्त करने की तैयारी है यह खबर भी पूर्णतया झूठ है क्योंकि उन्हें अभी 3 नोटिस ही तामिल नहीं हुआ है, सिर्फ एक नोटिस तामील हुआ था जो सामान्य नोटिस था . जो सभी शिक्षाकर्मियों को प्रारंभ में जारी हुआ था इसलिए बिना बर्खास्तगी के डर से प्रांतीय संचालकों के निर्देशानुसार अधिक से अधिक संख्या में शासन-प्रशासन के इस कदम का विरोध करें और ऐसी अफवाहों पर ध्यान ना दे ।

रविवार, 26 नवंबर 2017

मांग जायज है

शिक्षाकर्मीयो  की मांग वैधानिक
**************************
आज संविधान दिवस पर संवैधानिक बातें कर रहा हूँ जरूर पढियेगा-----
         शिक्षा कर्मियों की हड़ताल से अनेको सवाल उठ रहे है । सवाल उठना लाजमी है क्योंकि हड़ताल से ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में ताला जो लटका है ,मध्यान भोजन जैसी महती योजना का संचालन जो बंद हुआ है । आखिर जिन शिक्षकों को  राष्ट्र निर्माता कहा जाता है वे अपने दायित्वों से विमुख होकर सड़क में क्यो बैठे है ? उनकी मजबूरी क्या है ? हमारे शिक्षक इतना विवेक शून्य क्यो हो गए है ? बार बार  सड़क पर क्यो उतरते है ? उनकी कुछ तो मजबूरी होगी जिसका समय रहते स्थाई समाधान ढूंढना जरूरी हो गया है ।
    समस्या का सूत्रपात  अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री परिषद द्वारा 12 जुलाई 1994 को लिये गए निर्णय से हुआ । जिसमें कहा गया कि - स्कूल शिक्षा विभाग , आदिम जाति , अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अधीन चल रहे समस्त स्कूल पंचायतो के नियंत्रण में कार्य करेंगे तथा स्कूलों के संचालन का पूर्ण उत्तरदायित्व सम्बन्धित जनपद  पंचायतों का रहेगा । यह भी निर्णय लिया गया था कि स्कूलों में पदस्थ सभी शासकीय सेवक तथा सहायक शिक्षक , शिक्षक , व्याख्याता के रिक्त पद के विरुद्ध नियुक्त किये जाने वाले शिक्षा कर्मी वर्ग 1, 2 , 3 जनपद पंचायत के कार्यकारी नियंत्रण के अधीन रहेंगे । यह भी कहा गया कि 73 वें तथा 74 वें संविधान संशोधन के फलस्वरूप पंचायतो को अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जा रहा है । मेरे ख्याल से विवाद का जड़ यही है कि उक्त निर्णयानुसार न तो शासकीय सेवको (कार्यरत शिक्षक ) को पंचायत के अधीन किया  गया और न ही पंचायत को अधिकार प्रत्यायोजित हुऐ। अब एक छत के नीचे एक ही कार्य व पद को धारण करने वाले दो विभाग के कर्मचारी तैयार हो गए। जहाँ पद ,कार्य, कर्तव्य, दायित्व समान किन्तु अधिकार व वेतन भत्तो में जमीन आसमान का अंतर । सरकार अपनी योजना में सफल तो हो गई पर बेरोजगार युवक अल्प मानदेय में भी  इस आश में शिक्षा कर्मी बनते  गए कि भविष्य में मूल पद ( शिक्षक ) मिल जाएगा । क्योंकि इसी निर्णय में कहा गया था कि तीनों वर्ग के कर्मीगण पांच वर्ष तक संतोषजनक सेवा कर लेते है तो सरकार एक चयन प्रक्रिया अपनाकर उन्हें रिक्त पद के विरुद्ध शासकीय सेवा में नियमित नियुक्ति देने पर विचार करेगी। विभिन्न सरकारों द्वारा बेरोजगार युवक शिक्षा कर्मी बनकर छलते गए , समय बीतता गया । अवसर पाकर बीच बीच मे सड़क पर उतरते रहे। सरकार में पक्ष और विपक्ष दोनो आश्वासन देते रहे किन्तु कोई भी स्थाई समाधान के लिए इच्छा शक्ति नही दिखाई । दुःख की बात तो ये है कि राजनीतिक पार्टियां शिक्षा को भी वोट बैंक में तब्दील कर दिये है । क्योकि सत्ता पक्ष शिक्षा कर्मीयो के मांगों का विरोध करती है । जो सत्ता में आने के 14 साल पहले यहाँ तक घोषणा कर दी थी कि हमारी सरकार बनने पर एक घंटे के भीतर सारि मांगे मान कर नियमित कर देंगे । तो वही कभी सत्ता में रहे विपक्ष समर्थन करने मंच तक आ धमकती है जो घोर विरोधी थे ।
        यहां सवाल ये उठता है कि सरकार को ऐसी विसंगतिपूर्ण नीति बनाने की जरूरत पड़ी तो पड़ी क्यो ? बेरोजगारों का शोषण करने ? या एक ही छत के नीचे समान कार्य करने वाले कर्मचारियों के बीच वर्ग संघर्ष पैदा करने ? इन परिश्थितियो में राष्ट्र निर्माताओ ( शिक्षको ) के मन मे कुंठा लाजमी है । जबकि संविधान का अनुच्छेद -309 - संघ या राज्य सेवा में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों का विनियमन को दर्शाता है । " अनुच्छेद -309 - के अंतर्गत लोक सेवको की भर्ती तथा उनकी सेवा की शर्तों का विनियमन करने के लिए बनाया गया कोई अधिनियम यदि किसी भी मूल अधिकार का अतिक्रमण करता है , अर्थात विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 15, 16, 19, 310, 311, 320 के विरुद्ध है तो वह असंवैधानिक होगा ।"
* अनुच्छेद-14- में स्पष्ट प्रावधान है कि समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जायेगा।
* अनुच्छेद -15-    धर्म ,मूलवंश ,जाती ,लिंग ,जन्म-स्थान के आधार पर विभेद प्रतिषेध करता है।
*अनुच्छेद-16- लोक सेवाओं में अवसर की समानता का अधिकार प्रदान करता है।
*अनुच्छेद-19- वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  ।
अनुच्छेद-19(1)(क)-प्रदर्शन या धरना को
संरक्षण प्रदान करता है जो हिंसात्मक और  उच्छृंखल नही है।
*अनुच्छेद-310- "प्रसाद का सिद्धांत" - आशय - केन्द्रीय कर्मचारि  राष्ट्रपति और राज्य के कर्मचारि राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त कार्य करेंगे।
*अनुच्छेद-311-प्रसाद के सिद्धांत पर निर्बन्धन
311(1)-नियुक्तिकर्ता से निचले प्राधिकारी द्वारा पद से नही हटाया जा सकता।
311(2)-सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाना
* अनुच्छेद-320- लोग सेवा आयोग से परामर्श
        संविधान के उक्त प्रावधानों का पालन करते हुए भर्ती नियम बनाया गया हो तो हि  वह  वैध होगा । तत्कालीन म प्र सरकार ने  संविधान के अनुच्छेद -14 -  का पालन न कर घोर विसंगतिपूर्ण अधिनियम पारित कर भर्ती नियम बनाया । जिसका उद्देश्य केवल और केवल इस नियम के तहत नियुक्त कर्मचारियों का शोषण करना था । शिक्षाकर्मी आज धरना प्रदर्शन कर रहे है तो इन्ही संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए । ये सड़क की लड़ाई लड़ रहे है तो अपनी हक के लिए । प्रदर्शन कर रहे है तो शोषण के खिलाफ । वास्तव में ये विरोध है तो अन्याय के खिलाफ ।
      शिक्षाकर्मीयो की माँग " समान कार्य के लिए समान वेतन " और  "मूल पद पर संविलियन " है । पहली मांग " समान कार्य के लिए समान वेतन " जो अनुच्छेद-14- का अनुपालन होगा। दो पदों को धारण करने वालों में निम्न बिंदुओं पर समानता हो तब माना जावेगा समान कार्य जब * स्थिति एक समान हो * पदनाम की समानता * कार्य की प्रकृति तथा परिणाम * भर्ती के स्रोत और ढंग * अर्हता * उत्तरदायित्व * विश्वसनीयता * अनुभव        * गोपनीयता --में समानता हो ।उपरोक्त बिंदुओं की समानता के कारण अनुच्छेद 14 आकर्षित होता है । जो शिक्षाकर्मियों की मांग को जायज ही नही बल्कि संवैधानिक ठहराता है।
        शिक्षाकर्मीयो की दूसरी माँग  "मूल पद पर संविलियन " है। जिस पर शासन - प्रशासन व जान प्रतिनिधियो द्वारा कहा जाता है कि इनके भर्ती नियम में ऐसा उल्लेख नही है।
ये मांग बार बार इसलिए उठ रही है क्योंकि जिस दिन शिक्षाकर्मी भर्ती की परिकल्पना की गई थी उसी दिन मंत्री परिषद में ये भी निर्णय लिया गया था कि संतोषजनक पांच साल सेवा पश्चात शासकीय सेवा में नियमित नियुक्ति देने पर विचार करेगे ।तत्कालीन ( म प्र ) शासन के आदेश दि-24 -01-1998 को कहा गया था कि शिक्षाकर्मी पद शिक्षक का पूरक है।
             गौर करने वाली बात यह भी है कि मूल पद शिक्षा विभाग का है, कार्य क्षेत्र शिक्षा विभाग में, नियंत्र शिक्षा विभाग का, कार्य स्थल शिक्षा विभाग में । केवल मात्र नियुक्ति किये जाने के आधार पर कह दिया जाता है कि शिक्षाकर्मी पंचायत विभाग के कर्मचारि है ।ऐसे में ये न तो शिक्षा विभाग के हुए न पंचायत विभाग के । छत्तीसगढ़ शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा दिनांक 27-06-2008 को पद संरचना (सेटअप) जारी किया गया है जिसमे शिक्षकर्मी वर्ग 1,2,3 का उल्लेख किया गया है । इससे स्पष्ट है कि शिक्षकर्मी मूलतः शिक्षा विभाग के कर्मचारि है जबकि पंचायत वभाग के सेटप में इनका कोई उल्लेख नहीं है ।
         विभिन्न आंदोलनों के दौरान विभिन्न पार्टियों के नेताओं द्वारा संविलियन का समर्थन करना, अपनी-अपनी घोषणा-पत्र में प्रमुखता से शामिल करना, शिक्षकर्मीयो के संविलियन की मांग को बल ही नही देता बल्कि जायज ठहराता है । शिक्षकर्मीयो के हड़ताल के परिपेक्ष्य में शासन द्वारा दिनांक 25-8-2008 को माननीय मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जी के कक्ष में उनके समक्ष तथा माननीय वीरेंद्र पांडेय/सलाहकार मुख्यमंत्री / मुख्य सचिव/ प्रमुख सचिव  वित्त /सचिव आदिम जति तथा जनजाति/सचिव स्कूल शिक्षा विभाग/संचालक पंचायत एवं शिक्षकर्मी संघ के पदाधिकारियों की उपस्थिति में निर्णय लिया गया था कि-
* शिक्षकर्मीयो को क्रमोन्नत वेतनमान दिया जयेगा
* 20-20% प्राचार्य , प्रधान पाठक मिडिल, प्रधान पाठक प्रायमरी के पद शिक्षकर्मीयो से भरा जाएगा । उक्त निर्णय भी उनके सम्मिलियन की मांग को जायज ठहराता है ।इसके अलावा "छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा राजपत्रित सेवा ( शाला स्तरीय ) भर्ती तथा पदोन्नति नियम 2008" में भी 25% प्राचार्य के पद शिक्षाकर्मी वर्ग 1 से भरने की बात कही गई गई थी जिसका क्रियान्वयन आज तक नही हुआ । जिससेे शिक्षकर्मीयो का धैर्य टूट गया और परिणामस्वरूप वर्तमान उग्र आंदोलन खड़ा हो गया ।
          कुछ लोग शिक्षाकर्मी की तुलना किसानों की दशा से करते है । मानते है कि छत्तीसगढ़ में ही नही पुरे देश मे किसानो की दशा दयनीय है।उन्हें अपनी खून पसीना की कमायी का उचित प्रतिफल नही मिल रहा है । शोषित पीड़ित है ।दोनो की पीड़ा में अंतर नहीं है । दोनों को उनकी अपनी परिश्रम का उचित फल मिलनी चाहिये । किसानों की चिंता हर वर्ग को  करनी चाहिए । देश दुनिया के लोगों की उदराग्नि शांत करने वाला कोई  है तो वो है किसान । फिर उनकी उपेक्षा क्यो ? शायद एक बड़ा संगठन का अभाव है जिससे वे अपना हक मांग सकें । आज किसान और किसान  हितैषी लोगों से शिक्षाकर्मी अपेक्षा करते है कि उनकी वैधानिक मांगों का पुरजोर समर्थन करें और उनका हक दिलाये । जिस दिन ये शुभ कार्य आप सब के सहयोग से फलीभूत होगा मैं विश्वास दिलाता हूँ  शिक्षाकर्मी भी जान भावनावों का आदर कर कंधे से कंधा मिलाकर हर संभव भरपूर सहयोग प्रदान करेगा ।

शिक्षाकर्मी संविलियन

https://www.facebook.com/groups/137612443565129/

यह छत्तीसगढ स्तरीय
*"शिक्षाकर्मी संविलियन"*
फेसबुक समूह है।सभी शिक्षाकर्मी साथी इस समूह से जुड़े व इस मैसेज को अधिक से अधिक शेयर करें
#Morcha2017

बुधवार, 22 नवंबर 2017

कब मिलेगा न्याय

�� *विनम्र निवेदन* ��
आदरणीय पालको,,प्रिय विद्यार्थियों,
आप सब के मन मे ये बात होगी कि क्यो हम शिक्षाकर्मी विद्यार्थियों को पढ़ना छोड़कर हड़ताल कर रहे है??

किसी किसी के मन मे हम लोगो के प्रति क्रोध के भाव भी आ रहे होंगे कि हमे विद्यार्थियों के भविष्य की कोई चिंता नही है,
इस प्रकार के भ्रामक प्रचार भी बड़े जोरशोर से कुछ लोगो द्वारा किया जा रहा है।
*उनका उद्देश्य सही तथ्य को छुपाकर भ्रामक प्रचार कर पालक विद्यार्थी और शिक्षक के पवित्र व अटूट संबंध को तोड़ना ही है।*
मैं इसी संदर्भ में अपने विचार,मन की पीड़ा को आपके समक्ष रखना चाहता हु इस विश्वास के साथ कि आप अपने गुरुजनों को समझ पाएंगे।

आप सभी भलीभांति जानते है,अनुभव भी करते है कि अपने कर्तव्यपालन में हमारी पूरी निष्ठा रहती है,कही कोई कमी नही करते अपितु विद्यार्थियों के हित के लिए अपना तन मन धन लगा कर सम्पूर्ण प्रयास करते है।उसके बाद भी हमे शासन एक ही विद्यालय में शिक्षक न् कहकर शिक्षाकर्मी,पंचायत कर्मी कहती है,जबकि उतना ही कार्य और कही कही पर हमसे कम भी समर्पण दिखाने वाले को शिक्षक कहती है।
हमे *शासन कहती है कि हम उनके कर्मचारी ही नही है ,हम तो पंचायत के कर्मचारी है* परंतु चुनाव,जनगणना जैसे राष्ट्रीय स्तर के भी उत्तरदायित्व देने के अवसर पर सबसे पहले हमें बुलाती है तब नही कहती के हम उनके शासकीय कर्मचारी नही है।
हम अपने कार्यालय में वो सभी उत्तरदायित्व का निर्वहन करते है जो एक नियमित शिक्षक करते है,चाहे अध्यापन कार्य हो, खेलकूद हो,सांस्कृतिक कार्यक्रम हो,नवाचार हो, प्रत्येक क्षेत्र में हम कभी प्रभारी प्रधान पाठक बनकर तो कभी सामान्य शिक्षक के रूप में बराबर का कार्य करते है,परंतु वेतन से लेकर सारी सुविधाओ को देने के समय *हमें पंचायतकर्मी कहकर भेदभाव किया जाता है।*
हमने जब भी शासन से इस बारे में विचार कर हमारी समस्याओं का समाधान करने को कहा सदैव हमे छला गया।
*अभी तक 22 सालो में 22 कमेटी बनाकर भी हमे स्थाई समाधान नही दिया गया*,और अब *पुनः कहती है कि फिर से 1 कमेटी बनाएंगे और 3 महीने बाद बताएंगे कि उसमे क्या हुआ।*
कैसी विडंबना है कि योग्यता होते हुए भी हम प्रभारी प्रधानपाठक और प्राचार्य बनकर विद्यालय को सम्हाल सकते है परंतु *प्र. पाठक और प्राचार्य नही बन सकते* जबकि अनेक शिक्षाकर्मी तो अब उसी संस्था से रिटायर भी होने वाले है।।कारण क्योकि हम पंचायतकर्मी है।
*हमे 3-3 महीनों तक वेतन नही दिया जाता*,,RTI से आप पता कर लीजिए दीपावली होली जैसे त्योहार के समय हमें वेतन नही दिया जाता *ये कहा जाता है के आप शिक्षाकर्मी है आपके वेतन के लिए बजट नही है* जबकि नियमित शिक्षकों को प्रत्येक माह के 5 तारीख तक अनिवार्यतः वेतन मिलता है।
हमारे रिटायर होने के बाद दूसरे शिक्षकों के समान हमे पेंसन की पात्रता नही होगी।
यदि सेवाकाल मे हमारी मृत्यु हो जाये तो हमारे परिवार वालो को *दूसरे शिक्षकों के समान सरलता से अनुकम्पा नही मिलेगी।इतनी शर्ते रखी गई है कि मिलना संभव नही है।*
हमे उसी कार्यालय में कार्य करने वाले *अन्य शिक्षकों के समान पदोन्नति/क्रमोन्नति नही मिलेगी।*
ये सब इसलिए क्योकि हम शिक्षाकर्मी है और हमारे ही स्टाफ के एक वर्ग को ये सारी सुविधाये मिलती है क्योंकि वो शिक्षक है ,,शिक्षाकर्मी नही।
*हमारी लड़ाई केवल वेतन के लिए नही है अपितु अपने गुरु होने के आत्मसम्मान के लिए है।*
हमारी मांग है कि हमे भी समान कार्य के आधार पर अन्य शिक्षक के समान सुविधाये अर्थात् *हमारा शासकीयकरण /संविलियन कर हमें बराबर का सम्मान दिया जाए* जो कि हमारा अधिकार है।
हमे अपने विद्यार्थियों के भविष्य की चिंता है परंतु इस परिस्थिति के लिए हमे विवश किया गया।हमने इन सब बातो को लगभग *20 दिन पूर्व 1 दिवसीय सांकेतिक धरना देकर शासन को उचित निर्णय लेने के लिए समय दिए थे।परंतु उन्होंने कोई निर्णय नही लिया।*
*संभवतः अब आप हमारी पीड़ा को समझकर हमे अपना   सहानुभूति, अमूल्य समर्थन प्रदान करेंगे।*

शनिवार, 11 नवंबर 2017

भारतीय शासक

I N D I A N   R  U  L E  R  S

गुलाम वंश
1=1193 मुहम्मद  घोरी
2=1206 कुतुबुद्दीन ऐबक
3=1210 आराम शाह
4=1211 इल्तुतमिश
5=1236 रुकनुद्दीन फिरोज शाह
6=1236 रज़िया सुल्तान
7=1240 मुईज़ुद्दीन बहराम शाह
8=1242 अल्लाउदीन मसूद शाह
9=1246 नासिरुद्दीन महमूद 
10=1266 गियासुदीन बल्बन
11=1286 कै खुशरो
12=1287 मुइज़ुदिन कैकुबाद
13=1290 शमुद्दीन कैमुर्स
1290 गुलाम वंश समाप्त्
(शासन काल-97 वर्ष लगभग )

��खिलजी वंश
1=1290 जलालुदद्दीन फ़िरोज़ खिलजी
2=1296
अल्लाउदीन खिलजी
4=1316 सहाबुद्दीन उमर शाह
5=1316 कुतुबुद्दीन मुबारक शाह
6=1320 नासिरुदीन खुसरो  शाह
7=1320 खिलजी वंश स्माप्त
(शासन काल-30 वर्ष लगभग )

��तुगलक  वंश
1=1320 गयासुद्दीन तुगलक  प्रथम
2=1325 मुहम्मद बिन तुगलक दूसरा  
3=1351 फ़िरोज़ शाह तुगलक
4=1388 गयासुद्दीन तुगलक  दूसरा
5=1389 अबु बकर शाह
6=1389 मुहम्मद  तुगलक  तीसरा
7=1394 सिकंदर शाह पहला
8=1394 नासिरुदीन शाह दुसरा
9=1395 नसरत शाह
10=1399 नासिरुदीन महमद शाह दूसरा दुबारा सता पर
11=1413 दोलतशाह
1414 तुगलक  वंश समाप्त
(शासन काल-94वर्ष लगभग )

��सैय्यद  वंश
1=1414 खिज्र खान
2=1421 मुइज़ुदिन मुबारक शाह दूसरा
3=1434 मुहमद शाह चौथा
4=1445 अल्लाउदीन आलम शाह
1451 सईद वंश समाप्त
(शासन काल-37वर्ष लगभग )

��लोदी वंश
1=1451 बहलोल लोदी
2=1489 सिकंदर लोदी दूसरा
3=1517 इब्राहिम लोदी
1526 लोदी वंश समाप्त
(शासन काल-75 वर्ष लगभग )

��मुगल वंश
1=1526 ज़ाहिरुदीन बाबर
2=1530 हुमायूं
1539 मुगल वंश मध्यांतर

��सूरी वंश
1=1539 शेर शाह सूरी
2=1545 इस्लाम शाह सूरी
3=1552 महमूद  शाह सूरी
4=1553 इब्राहिम सूरी
5=1554 फिरहुज़् शाह सूरी
6=1554 मुबारक खान सूरी
7=1555 सिकंदर सूरी
सूरी वंश समाप्त,(शासन काल-16 वर्ष लगभग )

*मुगल वंश पुनःप्रारंभ*
1=1555 हुमायू दुबारा गाद्दी पर
2=1556 जलालुदीन अकबर
3=1605 जहांगीर सलीम
4=1628 शाहजहाँ
5=1659 औरंगज़ेब
6=1707 शाह आलम पहला
7=1712 जहादर शाह
8=1713 फारूखशियर
9=1719 रईफुदु राजत
10=1719 रईफुद दौला
11=1719 नेकुशीयार
12=1719 महमूद शाह
13=1748 अहमद शाह
14=1754 आलमगीर
15=1759 शाह आलम
16=1806 अकबर शाह
17=1837 बहादुर शाह जफर
1857 मुगल वंश समाप्त
(शासन काल-315 वर्ष लगभग )

��ब्रिटिश राज (वाइसरॉय)
1=1858 लॉर्ड केनिंग
2=1862 लॉर्ड जेम्स ब्रूस एल्गिन
3=1864 लॉर्ड जहॉन लोरेन्श
4=1869 लॉर्ड रिचार्ड मेयो
5=1872 लॉर्ड नोर्थबुक
6=1876 लॉर्ड एडवर्ड लुटेनलॉर्ड
7=1880 लॉर्ड ज्योर्ज रिपन
8=1884 लॉर्ड डफरिन
9=1888 लॉर्ड हन्नी लैंसडोन
10=1894 लॉर्ड विक्टर ब्रूस एल्गिन
11=1899 लॉर्ड ज्योर्ज कर्झन
12=1905 लॉर्ड गिल्बर्ट मिन्टो
13=1910 लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंज
14=1916 लॉर्ड फ्रेडरिक सेल्मसफोर्ड
15=1921 लॉर्ड रुक्स आईजेक रिडींग
16=1926 लॉर्ड एडवर्ड इरविन
17=1931 लॉर्ड फ्रिमेन वेलिंग्दन
18=1936 लॉर्ड एलेक्जंद लिन्लिथगो
19=1943 लॉर्ड आर्किबाल्ड वेवेल
20=1947 लॉर्ड माउन्टबेटन

ब्रिटिस राज समाप्त शासन काल 90 वर्ष लगभग

आजाद भारत,प्राइम मिनिस्टर

1=1947 जवाहरलाल नेहरू
2=1964 गुलजारीलाल नंदा
3=1964 लालबहादुर शास्त्री
4=1966 गुलजारीलाल नंदा
5=1966 इन्दिरा गांधी
6=1977 मोरारजी देसाई
7=1979 चरणसिंह
8=1980 इन्दिरा गांधी
9=1984 राजीव गांधी
10=1989 विश्वनाथ प्रतापसिंह
11=1990 चंद्रशेखर
12=1991 पी.वी.नरसिंह राव
13=अटल बिहारी वाजपेयी
14=1996 ऐच.डी.देवगौड़ा
15=1997 आई.के.गुजराल
16=1998 अटल बिहारी वाजपेयी
17=2004 डॉ.मनमोहनसिंह
18=2014 से  नरेन्द्र मोदी

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