बुधवार, 29 जून 2016

छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ

✔ *छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियाँ* *(हाना)

किसी भी प्रदेश की लोकोक्तियां उस प्रदेश के लोक जीवन को समझने में सहायता करती है। वहां के लोग क्या सोचते हैं, किस चीज को महत्व देते हैं, किसे नकारते हैं, ये सब वहां के ""हाना'' प्रकट करती हैं। छत्तीसगढ़ में हाना प्रचलित हैं -

✅ 1.. *खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय*
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति खेती रहने पर भी पैसों के लिए, परदेश जाता है उसका जन्म ही बेकार या निरर्थक है

✅ 2. *तीन पईत खेती, दू पईत गाय*
इसका अर्थ है कि रोजाना खेत की तीन बार सेवा करनी चाहिए और गाय की दो बार सेवा होनी चाहिये। खेत और गाय जो हमारा सहारा है, उसे हमें सेवा करनी चाहिये

✅ 3. *अपन हाथ मां नागर धरे, वो हर जग मां खेती करे।*
जो व्यक्ति खुद हल चलाता है, वही व्यक्ति अच्छा खेती कर सकता है।

✅ 4. *जैसन बोही, तैसन लूही*
इस हाना में वही सत्य को दोहराया गया है जिसे गीता में महत्व दिया गया है - कर्म के अनुसार फल मिलता है

✅ 5. *तेल फूल में लइका बढे, पानी से बाढे धान*
    *खान पान में सगा कुटुम्ब, कर वैना बढे किसान*
इस हाना में बड़े सुन्दर तुलनात्मक रुप में जिन्दगी के हर पहलु को दिखाया गया है। बच्चा बढ़ेगा जब तेल फूल हो। इसी तरह पानी से धान और खाने पीने से कुटम्बी बढ़ते है। उसी तरह किसान तभी बड़ता है जब वे कर्मठ हो।

✅ 6. *गेहूं मां बोय राई, जात मां करे सगाई।*
गेहूं के साथ बोना चाहिये सरसों और उसी तरह विवाह अपनी जाति में करना चाहिये।

✅ 7. *बोड़ी के बइल, घरजिया दमाद*
    *मरै चाहे बाचै, जोते से काम।*
जिस तरह मंगनी के बैल की स्थिति अच्छी नहीं होती है। ठीक उसी तरह घरजवाई की स्थिति अच्छी नहीं होती।

✅ 8. *डार के चूके बेंदरा अऊ, असाढ़ के चूके किसान*
सही समय में कार्य करने के लिए कहा गया है इस हाना में नहीं तो वही हालत होगी जो एक बन्दर की होती है जो डाल को पकड़ नहीं पाया, या उस किसान की जिसने आषाढ़ में गलती की।

✅ 9. *एक धाव जब बरसे स्वाति, कुरमिन पहिरे सोने के पाती*
यह हाना नक्षत्र सम्बन्धी है। इसका अर्थ है कि अगर स्वाति नक्षत्र में एक बार बारिस हो जाये तो फसल अच्छी होती है।

✅ 1 0. *धान-पान अऊ खीरा, ये तीनों पानी के कीरा*
इस हाना के माध्यम से बच्चे भी जान जाते है कि धान पान और खीरे के लिए बहुत मात्रा में पानी ज़रुरी है।

✅ 11. *पानी पीए छान के, गुरु बनावै जान के*
पानी छानकर अगर नहीं पीया तो बीमारी होती है। उसी तरह किसी को अगर गुरु बनाओ तो पहले अच्छे से जान लो।

✅ 12. *जियत पिता मां दंगी दंगा, मरे पिता पहुंचावै गंगा*
इस हाना के माध्यम से बुजुर्गो के साथ कैसे बर्ताव किया जाता, उसे सामने लाया गया है। यह व्यंग के रुप में कहा गया है कि जब पिता जी थे, तब तो उनके साथ बुरी तरह पेश आते थे, उनपर चिल्लाते थे। अब जब वे नहीं रहे, उन्हें गंगा पहुँचाने के लिए व्यवस्था किया जा रहा है। अर्थात पितृभक्त होने का ढोंग या दिखावा किया जा रहा है।

✅ 13. *दहरा के मछरी अब्बर मोठ।*
इसका अर्थ है कि गहरे पानी की जो मछली हमें मिल नहीं पाती, वह बड़ी मोटी लगती है। अर्थात जो चीज़ हमें मिल नहीं पाती, वह हमेशा लोभनीय लगती है।

✅ 1 4. *महानदी के महिमा, सिनाथ के झोल।*
    *अरपा के बारु अऊ खारुन के सोर।*
महानदी की महिमा, शिवनाथ नदी की चौड़ाई, अरपा नदी का रेत और खारुन नदी के पानी का बहुत से स्रोत प्रसिद्ध है।हर व्यक्ति अपनी कोई खास बात के लिए प्रसिद्ध होता है।

✅ 15. *रुहा बेंदरा बर पीपर अनमोल।*
जो बन्दर बहुत लोभी है, उसके लिए पीपल का फल ही बहुत अनमोल है।

✅ 16. *केरा कस पान हालत है।*
केले के पत्ते के साथ कमज़ोर व्यक्ति की तुलना की गई है। केले के पत्ती जैसै हिलता रहता है, कमजोर व्यक्ति का मन उसी प्रकार अस्थिर होता रहता है। स्थिर नहीं होता है।

✅ 17. *हपटे बने के पथरा, फोरे घर के सीला।*
जंगल में किसी पत्थर से ठोकर लगी और घर वापस आकर सिल को फोड़ रहा है। किसी का गुस्सा किसी और पर उतार रहा है।

✅ 18. *कब बबा मरही त कब बरा खाबो*
किसी के मृत्यु के पश्चात जब श्राद्ध होना है तो स्वादिष्ट भोजन बनती है। यहाँ इन्तज़ार किया जा रहा है कि कब बबा कि मृत्यु हो, और स्वादिष्ट भोजन खाने को मिले।

✅ 19. *छत्तीसगढ़ के खेड़ा, मथुरा का पेड़ा*
जिस तरह मथुरा के पेड़ा प्रसिद्ध है उसी तरह छत्तीसगढ़ के खेड़ा। खेड़ा एक प्रकार की सब्ज़ी है। हर जगह किसी न किसी कारन के लिए प्रसिद्ध है

✅ 20. *आप रुप भोजन पर रुप सिंगार।*
भोजन करे तो अपनी पसन्द के मुताफिक। पर श्रृंगार करे तो दूसरों की रुची के अनुसार

✅ 21. *जेखर जइसे दाई ददा*
    *तेखर तइसे लइका।*
    *जेखर जैसे धर दुवार।*
    *तेखर तइसे फरिका।*
बच्चें अपने माता पिता जैसे होते है। जैसे मा पिता, वैसे ही बच्चें। ठीक उसी तरह, जिस तरह धर का दरवाज़ा धर के संदर्भ में ही बनती है।

✅ 22. *पाप ह छान्ही मां चढ़के नाचथे।*
अपराध कभी छिपी नहीं रहती। पाप जो है, वह तो छत पर जाकर नाचता रहता है

✅ 23. *महतारी के परसे, अऊ मधा के बरसे।*
यह हाना माता के ममता के बारे में है। जिस तरह मधा नक्षत्र में जब बारिस होती है, तब पृथ्वी तृप्त होती है, उसी तरह माता जब खाना परोसती है, बच्चे तब तृप्त होते है।

✅ 24. *गुरु गोसइयां एके च आय।*
इस हाना का अर्थ है कि गुरु और ईश्वर एक ही हैं।

✅ 25. *चलनी मां गाय दूहै, करम ला दोसे दे।*
चलनी में दुध दुहना है और कहना है कि भाग्य खराब है। अर्थात कोई कार्य ठीक से नहीं करके भाग्य को दोष देना

✅ 26. *धरम करे मां जउन होय हानि*
      *तभू न छाड़य धरम के बानी।*
धर्म के पथ पर चलने से अगर हानि हो तभी भी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए

✅ 27. *कहाई ले कराई नींक*
कहने से करना अच्छा है।

✅ 28. *जेखर खाय तेखर गाय*
जिसका खाते है, उसी का गुण गाते है।

✅ 29. *परदेश जमाई राजा बराबेरा गांव जमाई आधा*
      *घर जमाई गधा बरोबर जब मर्जी तब लादा।*
परदेश में जो दमाद रहता है, उसकी बहुत इज्ज़त होती है। एक ही गांव में जो दमाद रहता है। उसकी इज्ज़त आधी हो जाती है। और जो दमाद ससुराल में रहता है। उसे तो हमेशा काम करना पड़ता है जैसे गधे पर हमेशा समान लादा जाता है।

✅ 30. *खेत चरे गदहा मार खाय जोलहा।*
गधा किसी के खेत में घुसकर चरता रहता है और पिटाई होती है जुल्हे की। कोई और गलती करे और सज़ा किसी और को मिले।

✅ 31. *जेखर बेंदरा तेखर ले नाचे।*
जिसका बन्दर, उसी के मतानुसार काम करता है। अर्थात स्वामी के आदेशानुसार चलना।

✅ 3 2. *हाथी के पेट सोहारी मां नई भरय।*
जो व्यक्ति अधिक खाता है, उसका पेट कम खाने से नहीं भरता।

✅ 33. *हाथी ह कतकोन सुखाही तभी घोड़ा ले मोठ रइही।*
हाथी जिनता भी दुबला हो जाये, घोड़ा से फिर भी मोटा ही रहेगा। अर्थात पैसे वालों के पैसे कितना ही कम हो जाये, फिर भी दूसरों से वह संपन्न ही रहेगा।

✅ 3 4. *कोईली अऊ कौआ बोली ले, चिन हाथे।*
कोयल और कौआ, अपनी बोली से पहचान जाते है। अर्थात व्यक्ति अपने व्यवहार से पहचान जाते है।

✅ 35. *परोसी के बूती सांप नई मरै।*
परोसी के बलबूते पर सांप को नहीं मारा जा सकता। इसका अर्थ है कि कोई भी कठिन काम खुद करने से होता है।

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