कुछ निम्नलिखित शब्दों का सस्वर उच्चारण करें-
#अंग्रेज़ी
#अंपायर
#घंटे
#अंत
#अंग
#रंग
#सिंह
#अष्टांग
#बिंदु
#इंग्लैंड
#शंका
#ढंकना
इत्यादि...
अब उन्ही सब शब्दों को निम्न प्रकार से सस्वर उच्चारण करें।
#अन्ग्रेज़ी
#अम्पायर
#घण्टे
#अन्त
#अन्ग
#रन्ग
#सिन्घ
#अष्टान्ग
#बिन्दु
#इन्ग्लैंड
#शन्का
#ढन्कना
कुछ अन्तर परिलक्षित अवश्य हुआ होगा, नहीं ?
अच्छा अब ऐसे देखिए
कि
अनुस्वार और अनुनासिक - हिंदी व्याकरण
अनुस्वार
अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा में बिंदु अनुस्वार (ं) का प्रयोग विभिन्न जगहों पर होता है। हम जानेंगे की कब और क्यों इनका प्रयोग किया जाता है।
पंचम वर्णों के स्थान पर
अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् - ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है। जैसे -
गड्.गा - गंगा
चञ़्चल - चंचल
झण्डा - झंडा
गन्दा - गंदा
कम्पन - कंपन
अनुस्वार को पंचम वर्ण में बदलने का नियम-
अनुस्वार के चिह्न के प्रयोग के बाद आने वाला वर्ण ‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग और ‘प’ वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।
नियम -
• यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- वाड्.मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रूप में नहीं लिखे जाते हैं।
• पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दुबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे - प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि के प्रसंन, अंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
• जिन शब्दों में अनुस्वार के बाद य, र, ल, व, ह आये तो वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है। जैसे - अन्य, कन्हैया आदि।
• यदि य , र .ल .व - (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह - (ऊष्म व्यंजन) से पहले आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही प्रयोग किया जाता है चूँकि ये व्यंजन किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं। जैसे - संशय, संयम आदि।
अनुस्वार शब्द के कुछ उदाहरण निम्न हैं।
• सुन्दर, पंक्ति, चकाचौंध, श्रृंगार, संसर्ग, वंचित, गंध, उपरांत, सौंदर्य, संस्कृति।
• बंद, बंधन, पतंग, संबंध, ज़िंदा, नंगा, अंदाज़ा, संभ्रांत।
• कैंप, अधिकांश, संपूर्ण, सुन्दर, रंगीन, तंबू, नींद, ठंडी, पुंज, हिमपिंड, अत्यंत, कुकिंग, सिलिंडर, चिंतित, कौंधा, शंकु, लंबी, आनंद।
• निस्संकोच, फ़ेंक, संभावना, अंकित, अंतरंग, बैंजनी, आशंका, बिंदु, खिंच, अंशों, गेंद, सेंटर, संक्रमण, गुंजायमान, अंतिम, स्टैंड।
• असंख्य, नींव, संस्था, अत्यंत, क्रांति, संश्लेषण, चिंतन, ढंग, संघर्ष, प्रारंभ, संपादन, सिद्धांत।
• पसंद, गंदा, रौंदते, सींगो, खंभात, पंकज, कंठ।
• भयंकर, प्रपंच, शंख।
• मंडल, मंत्री, सौंप, संक्षिप्त, अंग्रेजी, प्रशंसक, संचालक, ग्रंथकार, धुरंधर, संपन्न।
#अनुस्वार_शब्द
कंधे, चौंका, परंतु, हंस, काकभुशुंडी, संदेश, संधि, चंचल, बंद, बसंत, गंध, झुंड, ठंडक, पंजे।
दिसंबर, प्रारंभ, भयंकर, सायंकाल, आशंका, डंडा, त्योंही, उपरांत, संकल्प, डेंग, इंद्रियों, कंप, खिंच, गुंजल्क, धौंकनी।
संदर्भ, आतंक, तांडव, श्रृंखला, शूटिंग, हस्तांतरण, शांति, सींकें, अंधकार।
#अनुनासिक_स्वर
अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।
आँख, माँ, गाँव आदि।
अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग
जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का प्रयोग करते हैं।
मैं, बिंदु, गोंद आदि।
अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर
अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग में कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे - हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
#अनुनासिक_शब्द
• गाँव, मुँह, धुँधले, कुआँ, चाँद, भाँति, काँच।
• बाँट, अँधेर, माँ, फूँकना, आँखें।
• बाँधकर, पहुँच, ऊँचाई, टाँग, पाँच, दाँते, साँस।
• धुआँ, चाँद, काँप, मँहगाई, जाऊँगा।
• ढूँढने, ऊँचे, भाँति।
• रँगी, अँगूठा, बाँधकर।
• मियाँ, अजाँ।
• जालियाँवाला, ऊँगली, ठूँस, गूँथ।
#अनुनासिक_शब्द
काँव-काँव, उँगली, काँच, बूँदें, रोएँ, पूँछ, काँच, झाँकते।
बूँदा-बाँदी, गाँव, आँगन, कँप-कँपी, बाँध, साँप, कुएँ, पाँच, फुँकार, फूँ-फूँ, दाँत।
झाँका, मुँहजोर, उँड़ेल, बाँस, सँभाले, धँसकर।
अब आप कोई भी अनुस्वार लगा शब्द देखें.....जैसे ..गंगा , कंबल , झंडा , मंजूषा, धंधा
उच्चारण के आधार पर स्वर को दो भागों में विभक्त किया जाता है।
1. अनुनासिका
2. निरनुनासिका
निरनुनासिका स्वर वे हैं जिनकी ध्वनि केवल मुख से निकलती है।
अनुनासिका स्वर में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका द्वार से भी निकलती है। अत: अनुनासिका को प्रकट करने के लिए शिरो रेखा के ऊपर बिंदु या चन्द्र बिंदु का प्रयोग करते हैं। शब्द के ऊपर लगायी जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं।
बिंदु या चंद्रबिंदु को हिंदी में क्रमश: अनुस्वार और अनुनासिका कहा जाता है।
अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर -----
1- अनुनासिका स्वर है जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन।
2- अनुनासिका (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है।
3- अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगीं हों। जैसे अ, आ, उ, ऊ
उदाहरण के रूप में --- हँस, चाँद, पूँछ
4. शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है. जैसे ---- गोंद , कोंपल, जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है.
जब अनुस्वार को व्यंजन मानते हैं तो इसे वर्ण में किन नियमों के अंतर्गत परिवर्तित किया जाता है....इसके लिए सबसे पहले हमें सभी व्यंजनों को वर्गानुसार जानना होगा.......।
(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ ,ड.
(च वर्ग ) च , छ, ज ,झ , ञ
(ट वर्ग ) ट , ठ , ड ,ढ ण
(त वर्ग) त ,थ ,द , ध ,न
(प वर्ग ) प , फ ,ब , भ म
य , र .ल .व
श , ष , स ,ह
यहाँ अनुस्वार को वर्ण में बदलने का नियम है कि जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा है उससे अगला अक्षर देखें ....जैसे गंगा ...इसमें अनुस्वार से अगला अक्षर गा है...ये ग वर्ण क वर्ग में आता है इसलिए यहाँ अनुस्वार क वर्ग के पंचमाक्षर अर्थात ङ में बदला जायेगा. दूसरा शब्द लेते हैं. जैसे कंबल –
यहाँ अनुस्वार के बाद ब अक्षर है जो प वर्ग का है ..ब वर्ग का पंचमाक्षर म है इसलिए ये अनुस्वार म वर्ण में बदला जाता है
कंबल..... कम्बल
झंडा ..---- झण्डा
मंजूषा --- मञ्जूषा
धंधा --- धन्धा
ध्यान देने योग्य बात ----
1 अनुस्वार के बाद यदि य , र .ल .व
श ष , स ,ह वर्ण आते हैं यानी कि ये किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं तो अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है .. तब उसे किसी वर्ण में नहीं बदला जाता...जैसे संयम ...यहाँ अनुस्वार के बाद य अक्षर है जो किसी वर्ग के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहाँ बिंदु ही लगेगा।
2- जब किसी वर्ग के पंचमाक्षर एक साथ हों तो वहाँ पंचमाक्षर का ही प्रयोग किया जाता है. वहाँ अनुस्वार नहीं लगता। जैसे सम्मान, चम्मच, उन्नति, जन्म आदि।
3- कभी-कभी जल्दबाजी में या लापरवाही के चलते हम अनुस्वार जहाँ आना चाहिए नहीं लगाते, तब शब्द के अर्थ बदल जाते हैं। उदाहरण देखिये –
चिंता -------- चिता
गोंद ----------- गोद
गंदा-------------- गदा ... इत्यादि।
#अंग्रेज़ी
#अंपायर
#घंटे
#अंत
#अंग
#रंग
#सिंह
#अष्टांग
#बिंदु
#इंग्लैंड
#शंका
#ढंकना
इत्यादि...
अब उन्ही सब शब्दों को निम्न प्रकार से सस्वर उच्चारण करें।
#अन्ग्रेज़ी
#अम्पायर
#घण्टे
#अन्त
#अन्ग
#रन्ग
#सिन्घ
#अष्टान्ग
#बिन्दु
#इन्ग्लैंड
#शन्का
#ढन्कना
कुछ अन्तर परिलक्षित अवश्य हुआ होगा, नहीं ?
अच्छा अब ऐसे देखिए
कि
अनुस्वार और अनुनासिक - हिंदी व्याकरण
अनुस्वार
अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा में बिंदु अनुस्वार (ं) का प्रयोग विभिन्न जगहों पर होता है। हम जानेंगे की कब और क्यों इनका प्रयोग किया जाता है।
पंचम वर्णों के स्थान पर
अनुस्वार (ं) का प्रयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् - ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के स्थान पर किया जाता है। जैसे -
गड्.गा - गंगा
चञ़्चल - चंचल
झण्डा - झंडा
गन्दा - गंदा
कम्पन - कंपन
अनुस्वार को पंचम वर्ण में बदलने का नियम-
अनुस्वार के चिह्न के प्रयोग के बाद आने वाला वर्ण ‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग और ‘प’ वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।
नियम -
• यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- वाड्.मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रूप में नहीं लिखे जाते हैं।
• पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दुबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे - प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि के प्रसंन, अंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
• जिन शब्दों में अनुस्वार के बाद य, र, ल, व, ह आये तो वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है। जैसे - अन्य, कन्हैया आदि।
• यदि य , र .ल .व - (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह - (ऊष्म व्यंजन) से पहले आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही प्रयोग किया जाता है चूँकि ये व्यंजन किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं। जैसे - संशय, संयम आदि।
अनुस्वार शब्द के कुछ उदाहरण निम्न हैं।
• सुन्दर, पंक्ति, चकाचौंध, श्रृंगार, संसर्ग, वंचित, गंध, उपरांत, सौंदर्य, संस्कृति।
• बंद, बंधन, पतंग, संबंध, ज़िंदा, नंगा, अंदाज़ा, संभ्रांत।
• कैंप, अधिकांश, संपूर्ण, सुन्दर, रंगीन, तंबू, नींद, ठंडी, पुंज, हिमपिंड, अत्यंत, कुकिंग, सिलिंडर, चिंतित, कौंधा, शंकु, लंबी, आनंद।
• निस्संकोच, फ़ेंक, संभावना, अंकित, अंतरंग, बैंजनी, आशंका, बिंदु, खिंच, अंशों, गेंद, सेंटर, संक्रमण, गुंजायमान, अंतिम, स्टैंड।
• असंख्य, नींव, संस्था, अत्यंत, क्रांति, संश्लेषण, चिंतन, ढंग, संघर्ष, प्रारंभ, संपादन, सिद्धांत।
• पसंद, गंदा, रौंदते, सींगो, खंभात, पंकज, कंठ।
• भयंकर, प्रपंच, शंख।
• मंडल, मंत्री, सौंप, संक्षिप्त, अंग्रेजी, प्रशंसक, संचालक, ग्रंथकार, धुरंधर, संपन्न।
#अनुस्वार_शब्द
कंधे, चौंका, परंतु, हंस, काकभुशुंडी, संदेश, संधि, चंचल, बंद, बसंत, गंध, झुंड, ठंडक, पंजे।
दिसंबर, प्रारंभ, भयंकर, सायंकाल, आशंका, डंडा, त्योंही, उपरांत, संकल्प, डेंग, इंद्रियों, कंप, खिंच, गुंजल्क, धौंकनी।
संदर्भ, आतंक, तांडव, श्रृंखला, शूटिंग, हस्तांतरण, शांति, सींकें, अंधकार।
#अनुनासिक_स्वर
अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।
आँख, माँ, गाँव आदि।
अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग
जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का प्रयोग करते हैं।
मैं, बिंदु, गोंद आदि।
अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर
अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग में कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे - हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।
#अनुनासिक_शब्द
• गाँव, मुँह, धुँधले, कुआँ, चाँद, भाँति, काँच।
• बाँट, अँधेर, माँ, फूँकना, आँखें।
• बाँधकर, पहुँच, ऊँचाई, टाँग, पाँच, दाँते, साँस।
• धुआँ, चाँद, काँप, मँहगाई, जाऊँगा।
• ढूँढने, ऊँचे, भाँति।
• रँगी, अँगूठा, बाँधकर।
• मियाँ, अजाँ।
• जालियाँवाला, ऊँगली, ठूँस, गूँथ।
#अनुनासिक_शब्द
काँव-काँव, उँगली, काँच, बूँदें, रोएँ, पूँछ, काँच, झाँकते।
बूँदा-बाँदी, गाँव, आँगन, कँप-कँपी, बाँध, साँप, कुएँ, पाँच, फुँकार, फूँ-फूँ, दाँत।
झाँका, मुँहजोर, उँड़ेल, बाँस, सँभाले, धँसकर।
अब आप कोई भी अनुस्वार लगा शब्द देखें.....जैसे ..गंगा , कंबल , झंडा , मंजूषा, धंधा
उच्चारण के आधार पर स्वर को दो भागों में विभक्त किया जाता है।
1. अनुनासिका
2. निरनुनासिका
निरनुनासिका स्वर वे हैं जिनकी ध्वनि केवल मुख से निकलती है।
अनुनासिका स्वर में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका द्वार से भी निकलती है। अत: अनुनासिका को प्रकट करने के लिए शिरो रेखा के ऊपर बिंदु या चन्द्र बिंदु का प्रयोग करते हैं। शब्द के ऊपर लगायी जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं।
बिंदु या चंद्रबिंदु को हिंदी में क्रमश: अनुस्वार और अनुनासिका कहा जाता है।
अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर -----
1- अनुनासिका स्वर है जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन।
2- अनुनासिका (चंद्रबिंदु) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है।
3- अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगीं हों। जैसे अ, आ, उ, ऊ
उदाहरण के रूप में --- हँस, चाँद, पूँछ
4. शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है. जैसे ---- गोंद , कोंपल, जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है.
जब अनुस्वार को व्यंजन मानते हैं तो इसे वर्ण में किन नियमों के अंतर्गत परिवर्तित किया जाता है....इसके लिए सबसे पहले हमें सभी व्यंजनों को वर्गानुसार जानना होगा.......।
(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ ,ड.
(च वर्ग ) च , छ, ज ,झ , ञ
(ट वर्ग ) ट , ठ , ड ,ढ ण
(त वर्ग) त ,थ ,द , ध ,न
(प वर्ग ) प , फ ,ब , भ म
य , र .ल .व
श , ष , स ,ह
यहाँ अनुस्वार को वर्ण में बदलने का नियम है कि जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा है उससे अगला अक्षर देखें ....जैसे गंगा ...इसमें अनुस्वार से अगला अक्षर गा है...ये ग वर्ण क वर्ग में आता है इसलिए यहाँ अनुस्वार क वर्ग के पंचमाक्षर अर्थात ङ में बदला जायेगा. दूसरा शब्द लेते हैं. जैसे कंबल –
यहाँ अनुस्वार के बाद ब अक्षर है जो प वर्ग का है ..ब वर्ग का पंचमाक्षर म है इसलिए ये अनुस्वार म वर्ण में बदला जाता है
कंबल..... कम्बल
झंडा ..---- झण्डा
मंजूषा --- मञ्जूषा
धंधा --- धन्धा
ध्यान देने योग्य बात ----
1 अनुस्वार के बाद यदि य , र .ल .व
श ष , स ,ह वर्ण आते हैं यानी कि ये किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं तो अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है .. तब उसे किसी वर्ण में नहीं बदला जाता...जैसे संयम ...यहाँ अनुस्वार के बाद य अक्षर है जो किसी वर्ग के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहाँ बिंदु ही लगेगा।
2- जब किसी वर्ग के पंचमाक्षर एक साथ हों तो वहाँ पंचमाक्षर का ही प्रयोग किया जाता है. वहाँ अनुस्वार नहीं लगता। जैसे सम्मान, चम्मच, उन्नति, जन्म आदि।
3- कभी-कभी जल्दबाजी में या लापरवाही के चलते हम अनुस्वार जहाँ आना चाहिए नहीं लगाते, तब शब्द के अर्थ बदल जाते हैं। उदाहरण देखिये –
चिंता -------- चिता
गोंद ----------- गोद
गंदा-------------- गदा ... इत्यादि।
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