बुधवार, 7 जून 2017

विद्यार्थियों के लिए

*सभी परिणामों पर एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट*

*ExamResult: रिजल्ट जैसा हो, बच्चों डरना नहीं- क्योंकि एक परिणाम आपकी उम्मीदों को तोड़ नहीं सकती*

*इन दिनों सैकण्डरी, सीनियर सैकण्डरी बोर्ड, स्नातक, स्नातकोत्तर व प्रतियोगी परीक्षा देने वाले छात्र रिजल्ट को लेकर काफी चिंतित है।* _अगर ऐसा है तो आपको परीक्षा के परिणाम को लेकर टेंशन में रहने की जरुरत नहीं है। क्योंकि कि ऐसे में तनाव के कारण आपकी सेहत पर भी असर पड़ेगा तो वहीं आपके भविष्य के लिए भी इस तरह का तनाव ठीक नहीं है। बच्चों को हर तरह का रिजल्ट स्वीकार करना चाहिए।_

आम तौर पर देखा जाता है कि जिन स्टूडेंट्स का रिजल्ट उनके माता-पिता या दोस्तों की उम्मीद के अनुरूप नहीं आता, वे बहुत ज्यादा दबाव में आ जाते हैं। और लगातार इस तरह के दबाव से वह डिप्रेशन में आकर गलत विचार मन में सोचने लगते हैं। जो कि बहुत घातक है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि परीक्षा परिणाम को लेकर बच्चों को तनाव मुक्त रहते हुए परिणाम जो भी आए उसे स्वीकार करने की कला सीखने की जरुरत है। जो कि एक चींटी से सबक के तौर पर सीखा जा सकता है, जो कि दीवार या पहाड़ पर चढ़ते में बार बार गिरती है, लेकिन हिम्मत नहीं हारती। 

*रिजल्ट जैसा भी आए सोच सकारात्मक रखें*

पत्रिका ने परीक्षा परिणामों को लेकर इंतजार कर रहे या रिजल्ट आने के बाद तनाव में रह रहे छात्रों की परेशानी को देखते हुए मनोवैज्ञानिक से बात की तो उनका कहना कि स्टूडेंट्स को डिप्रेशन बस्टर, टेंशन बस्टर व स्ट्रेस बस्टर बनना चाहिए। जब मनोवैज्ञानिक डॉ. रवि गुंठे से बात की, तब उन्होंने कहा कि गीता के आठवें अध्याय की तरह अपनी सोच सकारात्मक रखें कि जो होगा, अच्छा होगा। बस यही सोचें कि रिजल्ट अच्छा ही होगा।

*जिंदगी जीने की कला सीखें*

उनका कहना है कि यदि रिजल्ट उम्मीद के मुताबिक न भी हो, तो जिंदगी जीने का हुनर यह है कि एक परीक्षा ही सब कुछ नहीं है। रिजल्ट में फेल, कप्लीमेंट्री, सप्लीमेंट्री, पास, थर्ड डिविजन, सेकंड डिविजन, गुड सेकंड डिविजन, फस्र्ट डिविजन और मेरिट कुछ भी हो सकता है। रिजल्ट दिल की धड़कन या सांस की नली नहीं है। इसलिए परिवार, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट या दोस्तों के कारण किसी तरह का टेंशन नहीं लें।

*ग्रेड की टेंशन में नहीं पड़े*

डॉ. गुंठे ने कहा कि भावना में बह कर कोई ऐसा कदम न उठाएं कि आपके पास पछताने का भी समय न हो। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा सोचने से तनाव होता है। इससे आप डिप्रेशन में जा सकते हैं। इसलिए ग्रेड का टेंशन डस्टबिन में डाल दें। साथ ही उनका कहना था कि परीक्षा आईक्यू या विजन का तात्कालिक आकलन होती है। हो सकता है कि किसी कारण जब आप परीक्षा देने पहुंचे हो आप ठीक ठंग से तैयार नहीं हो। इसलिए डिविजन, परसेंटेज या ग्रेड का टेंशन डस्टबिन में डाल दें और फ्रेश माइंड रहें।

डॉ. गुंठे के मुताबिक, तनाव स्ट्रोक, हार्ट अटैक, अल्सर और अवसाद जैसे मानसिक बीमारियों को बुलावा देता है। एक बार नाकाम होने के बाद आप दुबारा एग्जाम दे सकते हैं, लेकिन जिंदगी एक बार चली गई तो दुबारा चांस नहीं मिलेगा।

*खुद पर रखें यकीन*

मनोवैज्ञानिक डॉ. रवि गुंठे के अनुसार हर स्टूडेंट परीक्षा व परीक्षा परिणाम से पहले अपना मूल्यांकन करता है। जब रिजल्ट आने वाला होता है तो स्टूडेंट्स को लगता है कि मैंने ठीक किया है। इसके उलट वह अपने टीचर, फ्रेंड,मदर, फादर या करीबी रिश्तेदारों की राय को महत्व देता है। वे कहते हैं कि कम से कम इतने परसेंट तो आना ही चाहिए। यह दबाव ही खतरनाक है।

*रिजल्ट जैसा भी आए समना करें*

रवि गुंठे अनुसार रिजल्ट आने पर सोसाइटी का सामना करें। लाइफ टर्निंग पॉइंट है। स्टूडेंट्स सबकी सुनें और खुद पर भरोसा रखें। क्यों कि एग्जाम एक तीर की तरह है जो एक बार कमान से निकल गया तो निकल गया, वह सही जगह भी लग सकता है और गलत भी लग सकता है। जिंदगी तनाव का नहीं, जीने का नाम है ।

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