शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

प्रारंभिक गतिविधियां

विद्यालय हमारे लिए ऐसा स्थान जहां हम कुछ सीखने सिखाने आते हैं। बच्चा घर के स्वतन्त्र वातावरण से निकल कर जब कक्षा एक में प्रवेश लेता है तो विद्यालय की दीवारें उसे बन्धन लगती हैं,ऐसी स्थिति में बच्चे को ऐसा वातावरण मिले कि वह स्वतन्त्र होकर खेल सके, बोल सके तो वह विद्यालय आने में रूचि लेगा।
हमारे सामने प्रश्न है कि हम बच्चों को क्या और कैसे सिखाये। सबसे पहले दक्षताओं की बात करते हैं। पहली दक्षता सुनना तो चलिए सुनाते हैं बच्चों को कुछ मजेदार कविताएँ, कहानियाँ और बच्चों को जोड़ते हैं विद्यालय से फिर बात आती है बोलने की तो क्यों ना बच्चों में सबसे पहले मौखिक भाषा विकास किया जाये। बच्चों से उनके घर परिवार, पड़ोस की बात करें वह जो बोल रहा है बोलने दे और बात समाप्त होने पर शाबाशी अवश्य दें।
   कक्षा एक की पुस्तक कलरव में  बाग और तालाब गणित ऐसे पाठ हैं जिन पर कई दिनों तक चर्चा की जा सकती है। पाठ को रोचक बनाने के लिए कुछ बच्चों को मेंढक, बन्दर, बतख, गाय, साँप,कुत्ता, चिड़िया,मुर्गा आदि पर अभिनय कराया जा सकता है अथवा बच्चों से पाठ के चरित्रों की बोलियों की नकल करायी जा सकती है, देखिए बच्चे कैसे रूचि लेकर सीखते हैं और विद्यालय से जुडते हैं।भाषा विकास में कहानी का अपना ही महत्व है और यदि कहानी अभिनय के साथ प्रस्तुत की जाये तो सोने पे सुहागा। बच्चों को शेर और खरगोश की कहानी सुनाकर उनसे अभिनय कराये, शेर कैसे दहाड़ा? खरगोश ने क्या किया? अच्छा कुआँ कितना गहरा होगा?जैसे प्रश्न कहानी सुनाने के बाद पूछते रहे बच्चे बोलना सीखेंगे।
भैंस चली गाय से मिलने  कहानी द्वारा बच्चों की कल्पना शक्ति का विकास किया जा सकता है? भैंस बस पर कैसे चढ़ेगी?
कुछ पर्चियां बना लीजिए जिन पर लिखा हो ---
मम्मी कैसे डांटती है?
मेंढक जैसे बोल कर दिखाओ।
सब्जी बेचने वाला कैसे आवाज लगाता है?
कुल्फी वाला कैसे बुलाता है?
छोटा भाई बहन कैसे रोते हैं?
बच्चों से ये पर्चियां एक एक कर उठवाकर उन पर लिखी बातों पर अभिनय कराये।

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